शिवपुरी मध्यप्रदेश का वो जिला है, जिसकी कमान कभी महारानी के तो कभी महाराज के हाथ में है। दोनों का प्रदेश व केंद्र की राजनीति में कद इतना बड़ा रहा और है, कि उनकी बात मानी भी जाती है।
फिर ऐसी क्या वजह रही कि इस शहर में रहने वाली जनता (प्रजा) कभी पानी के लिए तो कभी बदहाल सड़क पर उड़ रही धूल और ऊबड़- खाबड़ रास्ते से बमुश्किल निकल पा रही हैं। शहर के नालों में बह रही सीवर की गंदगी से उठ रही दुर्गंध से पूरे शहर का वातावरण दूषित हो रहा है। पिछले 15 साल।से चल रहा पानी का प्रोजेक्ट 200 करोड़ की लागत से कई चरणों में पूरा हो पाया। मेन लाइन का काम पूरा हो गया, तो अब डिस्ट्रीब्यूशन की लाइन के लीकेज परेशानी न बन जाएं, यह चिंता पिछले दिनों दौरे पर आए प्रभारी मंत्री भी व्यक्त कर चुके हैं।
शहर की सड़कों पर बह रही सीवेज की गंदगी से मुक्ति दिलाने एवं झील संरक्षण परियोजना के तहत शुरू हुआ सीवर प्रोजेक्ट 2 साल की जगह 13 साल में भी पूरा नहीं हो पाया। जबकि इस प्रोजेक्ट के फेर में पूरा शहर खोद दिया गया। यह प्रोजेक्ट सफल हो पाएगा, यह कोई नहीं कह पा रहा, जबकि लागत इसकी भी 150 करोड़ हो गई। अब घरों तक में कनेक्शन के लिए फिर करोड़ों का टेंडर करने की तैयारी है। इसकी खास बात यह है कि प्रोजेक्ट का लाभ भले ही अभी तक जनता को नहीं मिला पाया, लेकिन चारागाह बन चुके इस प्रोजेक्ट में करोड़ों का गोलमाल करने के फेर में प्रकरण लोकायुक्त में दर्ज हो गया।
शिवपुरी -झांसे लिंक रोड बरसों से बदहाल है, और इसे बनाने का डेढ़ साल पहले टेंडर होने के बाद भी ऊबड़ खाबड़ सड़क से निकलना दूभर हो रहा है। सड़क का ठेका भी भाजपा नेताओं के पास ह, इसलिए विकास की गति कछुआ चाल से चल रही है। शिवपुरी शहर में नगरपालिका में सड़कों का करोड़ों का घोटाला हुआ, तथा शहर की खोदी गई सड़कों का रोड रिस्टोरेशन के नाम पर 3 करोड़ रुपए ठिकाने लगा दिए गए। महल कॉलोनी बदहाल सड़क का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह कॉलोनी शिवपुरी विधायक के घर की दीवार से लगी हुई है।
कुछ सवाल:::::

- इस शहर को बदहाल क्या जान बूझकर रखा जा रहा है?
- जनता ने अपनी पसंद के वार्ड पार्षद चुने, तो फिर अध्यक्ष वो क्यों बनाकर थोप गई?
- शहर में एक साल विधायक को और दो साल नपाध्यक्ष को हो गए, यह दोनों जनप्रतिनिधि अपनी एक-एक उपलब्धि बता दें?
- अब कमान कथित महाराज के हाथ में है, तो फिर भी इस शहर में मनमानी क्यों चल रही है?, क्या वो अंकुश लगाने में सक्षम नहीं हैं?
- रोजगार के नाम पर कुछ ना होने से शहर में से युवा वर्ग कामकाज की तलाश में निकल जाने से अब यहां बच्चे व बुजुर्ग ही क्यों रह गए?