सब कुछ जानकर भी अनजान बने अधिकारी, क्योंकि आउटसोर्स कंपनियां नेताओं की
बेरोजगारी के फेर में शोषित हो रहे कर्मचारी, 15 हजार की पगार पर हस्ताक्षर कर मिल रहे 9 हजार
सैमुअल दास की कलम से…
देश में सरकारी विभाग अब निजीकरण की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। जहां पर कभी सरकारी कर्मचारी काम करते थे, वहां अब आउटसोर्स कर्मचारियों को नियुक्त करके उनका खुलेआम शोषण किया जा रहा है। हर महीने 15 हजार की पगार पर हस्ताक्षर करवा कर हाथ में केवल 8-9 हजार रुपए ही दिए जा रहे हैं। आउटसोर्स कंपनियों द्वारा किए जा रहे शोषण की जानकारी उन विभागों के अधिकारियों को भी है, लेकिन कंपनियां नेताओं की होने की वजह से अधिकारी भी मूकदर्शक बनकर रह गए।
देश में जब भाजपा केंद्र में आई थी तो हर साल 2 लाख नौकरियों का दावा किया गया। वो नौकरियां तो नहीं मिलीं, बल्कि विद्युत विभाग, बिजली कंपनी बन गया और देश का सैनिक अग्निवीर। अब तो स्वास्थ्य विभाग में भी तेजी से निजीकरण हो रहा है, और वर्तमान में आधे हेल्थ के काम आउटसोर्स कर्मचारी ही कर रहे है । रेलवे में भी अब टिकिट काउंटर पर आउटसोर्स कर्मचारी ही तैनात कर दिए गए हैं। सरकारी विभागों में तेजी से बढ़ रहे इस निजीकरण से काम की गुणवत्ता भले ही न सुधरी हो, लेकिन आउटसोर्स कंपनियां चलाने वाले नेताओं की जेब जरूर भरने लगी।
कंपनियों का संचालन करने वाले नेताओं की इनकम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि वो एक कर्मचारी के वेतन में से 6 से 7 हजार रुपए खुलेआम अवैध वसूली कर रहे हैं। जबकि एक-एक विभाग में आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या एक सैकड़ा से लेकर 5 सैकड़ा तक है। इतना ही नहीं अब यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। उधर आउटसोर्स पर काम करने वाले कर्मचारी अवैध वसूली का शिकार होकर भी अपने शोषण के खिलाफ आवाज नहीं उठा पा रहे, क्योंकि विरोध करते ही कंपनी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देती है, और दूसरे बेरोजगार को उसकी जगह काम पर रख लेती है। चूंकि बेरोजगारी भी इतनी अधिक है कि कुछ जगह तो आउटसोर्स पर काम करने के एवज में रिश्वत तक ली जा रही है।
सबसे अधिक युवा वोटर, फिर भी हो रहे शोषित
देश में सबसे अधिक युवा वोटर हैं, और लोकतंत्र में हर 5 साल में यह मौका दिया जाता है, कि अपनी पसंद का नेता चुनें। आउटसोर्स के नाम पर शोषित हो रहा युवा यदि ठान ले तो उन चेहरों को जरूर बदल सकता है, जो उनकी।मेहनत की कमाई में।से हर महीने हजारों रुपए।की अवैध वसूली कर रहे हैं। हालांकि यह नेता तो ईवीएम की मेहरबानी से चुनाव परिणामों को भी अपनी तरफ बदलना जानते हैं। फिर भी देश के शोषित हो रहे युवा को एक बार तो इस शोषण के खिलाफ आवाज उठानी होगी। क्योंकि शोषण करने वाले के बराबर ही शोषित होने वाला भी दोषी होता है।